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बदलाव / कुंदन माली
Kavita Kosh से
बौफा-बुद्धी
चिरमी
दोय आखर पढ़गी
चोटी माथै चढ़गी
नीं रैयी है
भोली
चिरमी रा चूंटणियां संतां
खा जाओला खत्ता
आफत आयां
मुजब जरूतां
बण जावैली
गोल़ी।