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बदला कुछ भी नही / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
बदला कुछ भी नहीं एक तेरे जाने के बाद
सारे मौसम अपने वक्त पे आते-जाते हैं
धूप वैसे ही चढती है उतरती हैं दीवारों पे
छाँव भी अक्सर थक के कहीं बैठ जाती है
गुलाब अब भी खिलते हैं उसी तरह
वैसे ही महकता है मोंगरा .. अब भी
पीर की मजार पे उम्मीद की चादरें चढ़ती हैं
आज भी वो फकीर झूठी दुआएं देता है !