भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बना दो विमल-बुद्धि भगवान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
बना दो विमल-बुद्धि भगवान।
तर्कजाल सारा ही हर लो, हरो सुमति-अभिमान।
हरो मोह, माया, ममता, मद, मत्सर, मिथ्या मान॥
कलुष काम-मति कुमति हरो, हे हरे! हरो अजान।
दभ, दोष, दुर्नीति हरणकर करो सरलता दान॥
भोग-योग, अपवर्ग-स्वर्गकी हरो स्पृहा बलवान।
चाकर करो चारु चरणोंका नित ही निज जन जान॥
भर दो हृदय भक्ति-श्रद्धासे, करो प्रेमका दान।
कभी न करो दूर निज पदसे मेटो भवका भान॥