भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरखा बहार बादल / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सुनो धरा की पुकार बादल ।
किसान का हित विचार बादल ।।
नयन निहारे पलक बिछाये ।
मयंक पहले उतार बादल ।
न चाँदनी का पता कहीं है,
न चैन आये करार बादल ।
विहाग गाता चला पथिक जो,
विहग बसेरा सँवार बादल ।
लगे अमावस घिरा सकल हो,
बिखेर तारे हजार बादल ।
सुमन सरोवर सुहास देना,
सप्रेम बरखा बहार बादल ।