भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसल अदरा / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
Kavita Kosh से
रात-रात भर बरसल अदरा
रात-रात भर गरज रहल हें
निकले में ई बरज रहल हें
उझल रहल हें पानी सगरो
खेत डूबगेल डूबल डगरो
बरसल अदरा हरसल कजरा
हारल सब तब बरसल अदरा
छप्पर छान चू रहल अगरी
डूब रहल पानी में नगरी
ओभा-डोमा उमड़ रहल हें
बिजली चमक रहल पल-पल हें
आसमान में गरजल बदरा
रात-रात भर बरसल अदरा
पाँव पयलिया खनक रहल हें
पानी में सब रंग दहल हें
भीतर नेहिया बरस रहल हें
मन मंदिर के पास रहल हें
दमदम दमक रहल हें गजरा
रात-रात भर बरसल अदरा
धान खेत के सुक्खल मोरी
ई बदरा से भरल तिजोरी
सोंधी गंध उठल धरती से
निकलल डूब सगर परती से
आसमान से सुनलो मुजरा
रात-रात भर बरसल अदरा