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बरसो जल / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
अंतरघट तक
प्यासे
तपते थार को
कुछ तो मिले आधार
बरसो जल
धारदार
आर-पार!
बरसों से सूनी
बिन साथी
पसरी हूं नि:श्छल
पाक प्यार की चाह में
ह्रदयंगम हो जाने
बसलो जल
बार-बार
आर-पार!
तू जो पिघले
पत्ता निकले
ठूंठ हर हो जाए
जीव को मिले आधार
कलंक मरुथल का धुल जाए
उतरो जल
डार-डार
थार-पार।