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बर्फीली सर्दी का दूसरा दिन / सुधा ओम ढींगरा
Kavita Kosh से
सूरज ने अंगड़ाई ली
पहली किरण ने
अधखुली घुटी-घुटी
आँखों से
काँच बगीचे का नरीक्षण किया......
चकाचौंध से चुंधिया कर
उनींदी -उनींदी सी वह
फिर सूरज में सिमट गई
दिन भर दुबकी रही.......
एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहतीं ?