बसरा बगदाद में / निर्मला गर्ग
खाने की मेज़ पर जब मैं सलाद सजा रही हूँ
बसरा बगदाद में टामहाक मिसाइलों की
बारिश हो रही है
बारिश की आँच मेज़ से गुज़रकर
मेरी शिराओं में फैल रही है I
घुटनों पर झुकी आईशा मिस्लेह
बीमार बेटी के लिए दुआ माँगना छोड़
ख़ैर माँग रही है अल्लाह से
इराकी सैनिकों की
आस्त्रा मुहम्मद का बेटा
जंग के शुरू होने से जो कुछ घंटों पहले जन्मा है
जिसकी आँखे खाड़ी के पानी सी नीली और
ख़ुशगवार हैं
उसकी माँ उसे लिए बिना ही घर चली आई है
बाकी बच्चों की ख़ैर ख़बर लेने
कितना वहशी है यह नरसंहार !
मैं बड़बड़ाती हूँ और जूठे बर्तनों को नल के नीचे
रखती हूँ ।
युद्ध और लूट जैसे बर्बर शब्दों के बीच
वे रखते हैं -
हवा और फूल जैसा एक शब्द
मुक्ति
झुठलाती हैं जिसे ख़ून में भीगी इराकी स्त्रियों और
बच्चों की निर्दोष देहें
गठबंधन सेना के प्रति उनकी बेपनाह नफरत
और अविश्वास
सभ्यता के उच्चतम शिखर पर पहुँचकर भी
महाबली !
गया नहीं तुम्हारा शिकारीपन
एक के बाद एक कितने आखेट ?
मैं सिहर उठती हूँ । मेरे सामने मेज़ पर
टामहाक मिसाइलों की बारिश में बहता है रक्त
रचनाकाल : 2003