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बस इतना याद है / परवीन शाकिर
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दुआ तो जाने कौन-सी थी
ज़ह्न में नहीं
बस इतना याद है
कि दो हथेलियाँ मिली हुई थीं
जिनमें एक मेरी थी
और इक तुम्हारी