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बस इतनी सी बात / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
मौसम तो
अच्छा था
लेकिन नहीं हुई बरसात
सुबह सुबह
घन घोर घिरे थे
लगता था बस अब बरसेगा
कंचन मेह पड़ेंगे,
सूखी धरती का जियरा हरषेगा
थोथे बादल
इक्षाओं पर
करें तुषाराघात
रामदीन ने
सपना देखा
ताल तलैय्या भरे हुए हैं
सोच रहा था भैय्या शायद
अब घूरे के दिन बहुरे हैं
लेकिन सपना
टूट गया,
है लम्बी काली रात
ऐसा नहीं
कि बादल
सारे भूल गए हैं यहाँ बरसना
शायद वो प्रोग्राम फिक्स्ड हैं
कब कब किसको कहाँ बरसना
रामदीन की
खेती प्यासी
बस इतनी सी बात
मौसम तो
अच्छा था
लेकिन नहीं हुई बरसात।