भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस तुझको पाया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

48
आज खोला था
पुराना बहीख़ाता
हिसाब जोड़ा
जो व्यर्थ था गँवाया
बस तुझको पाया।
49
छीजा है तन
तार तार जीवन
लोहे के पाँव
कुचल गए मन
तुझमें बसे प्राण।
50
महको तुम
मधुमालती बन
रजनी भर
रूप सँवारे भोर
देख तेरी मुस्कान।
51
शब्द-मंजरी
बिखरी उर-घाटी
प्रफुल्ल-प्राण
दिव्य-सुवास-बसी
तुम मन्त्रमुग्धा-सी।
52
शब्द-निर्झर
आकण्ठ झूमा उर
श्वास-तार पे
गीत हो सुरभित
मंत्रमुग्धा मन में।