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बस में पास बैठी एक बच्ची से / रणजीत

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आओ!
और निकट आ जाओ मेरे
सटकर बैठो
नहीं, यों नहीं!
उठो गोद में तुम्हें बिठा लूँ
एक भटकते आदम के अभिशप्त पुत्र को
कुछ क्षण की राहत मिल पाए
बहुत दिनों के प्यासे तन को
मानव-तन का
सौंधा-नरम परस मिल जाए
हाँ! इसी तरह बस के धक्कों से
अपने इस छोटे से सिर को
मेरे सीने पर आ-आ कर टकराने दो
अपने इस मासूम जिस्म को यों ही
मेरी इस बेचैन बाँह से
आधा छुआ हुआ रहने दो
कितने दिन के बाद आज फिर
चलती फिरती लाशों की ठंडक से ऊबे
मेरे तन को
इन्सानी गरमाइश का अहसास हुआ है
मानव-मानव के उन आदिम सम्बन्धों को तृप्ति मिली है
जिनके वशीभूत होकर ही
अब भी कभी-कभी मानव को
कोई भी मानव प्यारा लगता है!
लो फ़व्वारा आ गया
उतर जाओ धीरे से
ठहरो
बस को रुक लेने दो
नहीं! ओह इसकी थी कौन ज़रूरत!
उतरो
बस चलने वाली है जल्दी उतरो!
विदा! अलविदा!
अब मैं फिर से जूझ सकूँगा
थैली-शाही अर्थशास्त्र के चक्र-व्यूह से
जिसमें फँस कर हमने अपनी
हस्ती को ही खो डाला है
उसके उलझे ताने बाने को काटूँगा
जिसके अलग-अलग घेरों में घिर कर
मानव-मन मानव के मन से दूर आज,
मजबूर आज है,
मैं काटूँगा
मेरा ठंडा खून गरम है फिर से!