बहुत दिन से / सुदर्शन रत्नाकर
बहुत दिन से
हवा में एक ख़बर तैर रही थी
नेता जी नगरवासियों के दुख-दर्द
सुनने आ रहे हैं
मालूम होते ही सतर्क हो गई
सरकारी मशीनरी
चापलूसी की होने लगी तैयारी
वंदनवार सजाये जाने लगे,
क्षत विक्षत नगर की काया पर
कफ़न डाले जाने लगे,
कहीं नई सड़कें बनी तो कहीं
पैबंद लगाये गए।
बार बार शिकायतों पर भी
जहाँ कोई जाता नहीं
वहाँ सफ़ाई कर्मचारी आने लगे
कचरा एक जगह से उठा कर
दूसरी जगह फेंकने लगे।
स्थानीय नेता, पार्षद, विधायक भी
जग गए
जनता से हाथ मिलाने लगे
बढ़ चढ़ कर उपस्थिति दिखाने लगे
नेता जी के आदमकद पोस्टर लगाने लगे।
युद्धस्तर पर हो रहा था काम
हर चीज़ का हो रहा था इंतज़ाम
गंदगी के ढेरों को
फूलमालाओं से ढाँपा गया
जहाँ जहाँ नेता जी को जाना था
उन सड़कों को चमकाया गया।
नेता जी तो समय पर आए
पर बुलडोज़र हटाए नहीं गए
फिर भी वह ख़ुश थे
अंदर की बात वह भी जानते हैं
अपने से नीचे वालों की
रग रग पहचानते हैं
उन्हें भी तो अपनी रिपोर्ट
दिखानी होती है
जनता के बीच नहीं जाएँगे तो
अगली बार वोट कैसे पाएँके।
सब जानते हैं क्षत-विक्षत मुर्दों पर,
कफ़न डालने से लाशें ढक तो जाती हैं,
लेकिन उनसे आती दुर्गंध का क्या!
उन्हें कहाँ छिपायेंगे
वह तो हवा में तैरेगी
समाज में रोग फैलायेगी
उठो, जागो, सतर्क हो जाओ
मत बदलो स्वयं को लाशों में
जिन्हें वोट देते हो,
उनसे अपने अधिकार माँगो
कर्तव्य से दूर मत भागो
यह शहर, यह देश हमारा है
इसे स्वच्छ, सुंदर बनाने में भागीदार बनो।