भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहेलिये / शम्भु बादल
Kavita Kosh से
बहेलिए !
क्या बताओगे
हिमालय के आँचल में
विश्राम करते देवदारों की
उदार भव्यता और
उनके शीर्ष पर
मचलने वाली चिडि़यों के
गीतों की मोहकता
तेरे मन के
किसी छोर को क्यों नहीं छूतीं ?