भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँसुरी / बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल'
Kavita Kosh से
रतिया अंजोरिया नदी के कगरिया,
बाँसुरी बजल रसवारी।
साँय-साँय बोलि डोले पुरवा पवनवाँ,
रहि-रहि मन मोहे मीठी-मीठी तनवाँ,
नदिया के धरवा प चाननी छहरले,
झुरू-झुरू बोले फुलवारी।
बाँसुरी बजल रसवारी।
निरमल जल ढले पल-पल कल-कल,
बीचवा में बिछिलत चमक लगत भल,
छलकत बून्दवा में मोतिया जड़ल लागे,
मुखरल घर-पिछुवारी।
बाँसुरी बजल रसवारी।
धरती अकसवा के लगले बरतिया;
बरेला गगनवाँ में अनगिन बतिया;
बाँसुरी बजत जैसे पुरुवा के पलकी में
दुलहिन लगले दुआरी।
बाँसुरी बजल रसवारी।