बाई जी / कुमार मुकुल
पडोस में लेटी पत्नी गुनगुना रही है
मेरी खिडकी के पूरब में महानगर खाली है
और रात्रि के आलस्य को बजाती
पूरबा आ रही है
पत्नी गा रही है भजन घन घन घनन
नुपूर कत बाजय हन हन ...
नाचने गाने की मनाही है घर में
पर भजन पर नहीं घन घन घनन
सब सिमटे आ रहे कमरे में
मां, भाई, बहनोई, बहन घन घन घनन
नुपूर बज रहे हैं कांप रही हैं दीवारें
बज रहे हैं कपाट कहती है मां - कइसन भजन बा।
चुप रहते हैं पिता
भाई गुनगुनाता है धुन को
और सपने बुनने लगता है
छोटी बहन खिलखिला रही है
और निर्दोषिता से हंसती
छोटे भाई को हिला रही है
बडी बहन जमाई से आंखें मिला रही है
और पत्नी गा रही है
विद्यापति कवि ... पुूत्र बिसरू जनि माता ...
समाप्त होता है भजन
ताली बजाते हैं सब तड तड तड... बोलते हैं
आप खूब गाती हैं बाई जी ...।
1992