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बाज़ार की तरह / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
कभी मैं भावनाओं की डोर पर चलती हुई
तुम्हारी तरफ आ निकली थी
अजीब रहा ये चाहना
मैं गुम ही रही
उपस्थित रहे बस तुम
जीवन में अर्थ की तरह
अर्थ में दीप्ति की तरह
उतर चुके थे तुम मेरी
आत्मा की गहराई में
अपनी भावनाओं में डूबी मैं
तुम्हारे प्रेम से भरी हुई
भला कैसे जान सकती थी
प्रेम भी ख़रीदा-बेचा जा सकता है
बाजार में
दिल ही नहीं दिमाग से भी किया जाता है प्रेम
महज एक सौदा है प्रेम
सौदागर हो तुम प्रेम के
बावली मैं
कहाँ जानती थी?