बाढ़ के बाद / रंजना जायसवाल
(1)
पक्षी लौट पड़े हैं
अपने बसेरों की तरफ
पर बसेरा कहाँ?
जहाँ बनाया था
घोंसला
वह जगह दिखाई
नहीं पड़ रही है कहीं
तिनका-तिनका
बह गया है
सैलाब में ...
वे उड़ रहे हैं
छटपटाते हुए
इधर-उधर
ढूंढते हुए
रिहाईश के चिह्न।
(2)
किसान
सोच रहे हैं
कहाँ गईं वे सीमाएं
जो बनाई थीं उन्होंने
मिट गया
अपने-पराए
धर्म-जाति का भेद
जिस मिट्टी में
पाले-बढ़े
खेले-कूदे
वहाँ दूर-दूर तक
सिर्फ कीचड़ गंदगी
कुछ भी तो नहीं बचा
गँवाने को उनके पास
शून्य से करनी होगी
जीवन की शुरूवात।
(3)
कजरी गाय
बार-बार
भाग रही है
बथान की तरफ
जहाँ नहीं बचा
खूंटा भी
उसकी आँखों में
कौंधता है
वह दृश्य
जब सैलाब
बहा ले गया था
उसके सद्य ब्याये
बछड़े को
और वह
हुंकारती रह गयी थी
उसका बूढा मालिक
चढ़ गया
सैलाब की भेंट
कजरी की
कजरारी आँखों में
ढेर सारे
आँसू हैं।