भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबा शिवसहाय सिंह / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गौरांगी तन हर्षित हल मन शिवसहाय सिंह बाबा,
महा मनुज समान ऊ रहला ई हे हम्मर दावा।
नाता नेह सभी से केकरो से न कभी हल बैर,
पदयात्रा ऊ सदा कैलका कभी न थकलन पैर।
उनकर मन में सदा बसल हल हिमगिरि के हरियाली,
रामेश्वर, द्वारिका, पुरी से बद्री ब्रह्म कपाली।
तीर्थाटन में घूमैत रहला पूरे बारह साल,
भारत दरसन करते-करते मन हो गेल विशाल।
गार्हस्थ्य जीवन के बाबा हला उच्च प्रतिमान,
अब्बल दर्जा के हम देखलों ऐसन नय इन्सान।
खूब चलैलका घर-गिरहस्थी बाबा सफल किसान,
अप्पन कुल के ऊ लगला हल दिव्य सुदर्शन काया,
देते रहला गाँव आर परिवार के शीतल छाया।
सबके मदद करे में आगे हो जाए सब सुखिया
नै केकरो लौटैलका कहियो जे आवोहल दुखिया।
सूर्योपासक फैल रहल हंे उनकर सगर प्रकाश,
सब दिन करहते रहला जीवन हे बड़का उल्लास।
दाशरथी धोती, चमरौंधा जूता, मिर्जई कुरता,
छड़ी हाथ में, कंधा पर चादर अब मिलल अमरता।
सबके छाया देलका अपने कैलका नय विसराम,
कटहल, बेल, मधूक जम्बुफल आर लगैलका आम।
चलै के बेरिया में रंग लगलै अस्सी साल पुराना,
देखलों हल पहिलें नय अबतक ऐसन हम मरदाना।
संत, गृहस्थ, तपी, विधुरायण बाबा बड़का साधक,
कर्म-धर्म के जीवन में ऊ हला बड़ी आराधक।
बाईस मई उन्नीस सौ बावन के हल महा प्रयाण
आशीषो बाबा सबके होवै सब दिन कल्याण।
गाय दूहते देखलों उनका होते भोर विहान,
आर-आर पर घूमैत रहला खेत आर खलिहान।
महालाल, मेघू, मुंशी हल पाँच शुद्ध हलवाहा,
खूब समर्पित राजो हल बड़ ईमानदार सनवाहा।
खेत में बाँधे बड़का बोझा लेवेले पंच पौनियाँ,
घर में आकऽ रचे महावर हरहप्ता में नौनियाँ।
सब कुछ विदाहोल बाबा संग बदल गेल सब रंग,
बाबा के उपलब्धि देखकऽ हो रहलों हम दंग।