बारिध बिरह बड़ी बारिधि की बड़वागि
बूड़े बड़े बड़े जहां पारे प्रेम पुलते ।
गरुओ दरप देव जोबन गरब गिरि पयो
गुन टूटि छूटि बुधि नाउ डुलते ।
मेरे मन तेरी भूल मरी हौँ हिये की सूल
कीन्ही तिन तूल तूल अति ही अतुलते ।
भांवते ते भोँड़ी करी मानिनि ते मोड़ी करी
कौड़ी करी हीरा ते कनौड़ी करी कुलते ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।