भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारिशों में भीगता शहर / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
बारिशों में भीगता है जब ये शहर,
मानसून की बारिशों में,
सिल जाते हैं जैसे सारे जख्म,
बह जाता है जैसे सारा दर्द,
सारा तनाव,
सड़कों से उबलती आग,
कुछ पल को जैसे,
ठंडी पड़ जाती है,
भीगती इमारतें, भीगते पेड़
भीगती गाडियाँ, भीगते लोग
गीले कपड़ों में चमकता जिस्म
भीगे शीशों से झाँकती आँखें
किसी फैले हुए पेड़ की छाँव में
या किसी स्टैंड के तले,
ठहर जाती है जिन्दगी - कुछ पल को
सुरमई आकाश बरसता है
आशीर्वाद की तरह
बूंदों की टप-टप स्वरलहरियों से
एक भीनी-भीनी, सौंधी-सौंधी
ठंडक सी उतरती है
बारिशों में भीगता है जब ये शहर...