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बाल कविताएँ / भाग 17 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

3-हवा का झोंका

पर्वत-पर्वत
खेतों-खेतों
दिनभर घूमा
अल्हड़ प्यारा
रहा दौड़ता
नन्हा एक हवा का झोंका ।

पकड़ डालियाँ
झूला जीभर
बैठ गया-
पत्तों में छुपकर
किसी पेड़ ने
हाथ पकड़ कब उसको टोका ।

आँख बचाकर
झरने में भी
खूब नहाता
धूल उड़ाता
खलिहानो ने,
गाँव-गली ने कभी न टोका ।

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4-धूप

बहुत दूर से आई धूप
लेकरके गरमाई धूप ।

प्यासी धरती
प्यासा अम्बर
छिपे सभी हैं
तुझसे डरकर
तू न किसी को भाई धूप ।

बहा पसीना
मुश्किल जीना
चैन सभी का
तूने छीना
लू तेरी अँगड़ाई धूप ।

सूरज को जब
गुस्सा आता
चलते-चलते
वह थक जाता
ठण्डा शरबत लाई धूप ।

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