बाल कविताएँ / भाग 20 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
गुड़िया रानी
गुड़िया रानी बनी सयानी
कुछ करके दिखलाएगी ।
काम किचन का सभी सँभाला
दाल और भात खिलाएगी ॥
मुनिया रानी
मुनिया रानी,बड़ी सयानी
सुनती हमसे रोज़ कहानी।
कभी रात में जग जाती है
नींद सभी की भग जाती है
घर में जब , चुप्पी छा जाए
जोर-ज़ोर से चिल्लाकर के
मुनिया सबको पास बुलाए
सबको नानी याद दिलाए।
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ओ मेरी मैया !
बात सुनो ओ मेरी मैया !
ला दो मुझको ,सोनचिरैया
उसको दाना ,रोज़ खिलाऊँ
जीभर उससे ,मैं बतियाऊँ
उड़ना सीखूँ,मैं भी उससे
उसको मैं हँसना सिखलाऊँ
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खेली ऐसी होली
मोटू हाथी लाया भरकर
सूँड में अपनी रंग ।
लिए खड़े थे जो पिचकारी
वे सब रह गए दंग ॥
रंग सभी पर बरसा करके
दादा जी मुस्काए ।
किसमें दम जो मेरे ऊपर
आज रंग बरसाए।
भीगे बन्दर, भालू ,चीता
खेली ऐसी होली ।
हाथी के आगे टिक पाई
नहीं एक भी टोली ।।
हुई शाम को दावत जमकर
लाए सभी मिठाई ।
आधी खाई हाथी जी ने
आधे में सब भाई ।।
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हरियाली ने बौर सजाया
जन्म दिन वह याद है आया
पेड़ भेंट में मैंने पाया ।
आँगन में वह पेड़ लगाया
पानी उसको रोज पिलाया ।
पानी पीकर निकली डाली
डाली पर छाई हरियाली ।
हरियाली ने बौर सजाया
खुशबू से आँगन महकाया ।
आँगन में गाती मतवाली
कुहू -कुहू कर कोयल काली ।
महका बौर आम भी आए
हम सबने मिल-जुलकर खाए ।
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