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बाहर / पॉल एल्युआर / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
रात है, अकेलापन है, ठण्ड है,
जेल के दरवाज़े मजबूती से बन्द हैं ।
जेल के अन्धेरे में शाखाएँ राह छेज रही हैं,
और घास इस अन्धेरे में आकाश सहेज रही है ।
आकाश बन्द है जेल के ताले में,
सूरज निकला, जेल टूट गई उजाले में ।
ठण्ड है भारी, सारा बदन ठिठुर रहा है,
अपनी बाँहों में बान्ध मुझे पाला विपुर रहा है।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय