भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिजली-महिमा / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
अखबारोॅ में पढ़ै छियै
पढ़तें ऐलोॅ छियै
रेडियो सें सुनै छियै
सुनतें ऐलोॅ छियै
बेहिसाब भाषण
आय सें नैं
पचास सालोॅ सें
शहरोॅ में तेॅ छेवे करै
सब्भे ठो गामोॅ में
विद्युतीकरण करिये देवै ।

2.
करी तेॅ रहलोॅ छै
यै में कोय शंका नै
कहीं पर तार छै, कहीं खाली खंभा
ई देखी-सुनी केॅ नै करियै अचम्भा ।

3.
दिन भर नै हुलकै छै
शाम केॅ तनटा झलकै छै
गेल्हौं तेॅ गेले रहलौ।
सब्भे लोग कलपै छै ।

4.
केना केॅ पढ़तौं बच्चा-बुतरू
केना केॅ करभेॅ भनसा
कोय-कोय दिना तेॅ ऐन्होॅ होय छै
भुखले रहै छै मुनसा ।

5.
अभी तेॅ घुमलै गल्ली-कुच्ची
चली केॅ देखोॅ शहरोॅ के
रंग-बिरंगोॅ खेल देखभोॅ
शहरोॅ के लोगोॅ के ।

6.
डी. एम. आरो जी. एम. के
घेराव तेॅ करवे करै छै
रोड भी जाम होवे करै छै
तैय्यो कि कहियौं भाय
बिल भुगतान में धक्कम-धुक्की होवे करै छै ।,

7.
मकानोॅ में, दुकानोॅ में, अफसर के दफ्तर में
गर्मी के मारोॅ सें लोग परेशान छै
शहरोॅ के आन, बान, शानोॅ में कमी होय छै
रही-रही भीतर सें प्राण दुखाय छै ।

8.
बिजली सें पानी छै, बिजली सें भोजन
ओकरै सें दिन-रात घोॅर होय छै रौशन
गरीब तेॅ छटपटाय छै, अमीर चलावै छै जेनरेटर
कि कहियौं भाय, लेखक लिखै छै प्रदूषण पर लेटर ।