भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना पिये ही रहता है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
बिना पिये ही वह रहता है जब नशे की तरह।
गुज़ारता है जो दिन भी बड़े मज़े की तरह।
वो जोड़ तोड़ के सरकार भी बना लेगा,
चुनाव जीता है समझो, न मनचले की तरह।
क़दम-क़दम पर यहाँ ताक में सितमगर हैं,
भलाई चाहो तो रहना यहाँ भले की तरह।
प्यास मेरी वह हरगिज़ बुझा सकी न कभी,
ग्लास जाम से लगता है क्यों भरे की तरह।
बुलंद हौसला रखते हो मानता हूँ मगर,
चबा सकोगे न लोहे को तुम चने की तरह।
जो नारियों पर है जुल्मों सितम की बौछारें,
इसे न समझे कभी आम मसअले की तरह।
तुम्हारा लक्ष्य है सच्चा तो फिर विजय होगी,
मिलेगी मंज़िलें तुमको सजे-सजे की तरह।
जो मीठे पानी में घोला है नफ़रतों का नमक,
वो पानी पीने में लगता है अब खरे की तरह।