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बिनोखी फिरावन / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।
तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।
भिख्यारिन टूरी दाई, भीख माँगत फिरय।
भिख्यारिन टूरी दाई, भीख माँगत फिरय।
ठोमा भर कोदै दाई, चिमटी भर दाड़।
ठोमा भर कोदै दाई, चिमटी भर दाड़।
तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।
तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।

शब्दार्थ : भिख्यारि=भिखारी की तरह, ठोमा=मुट्ठी, कोदौ=छावल, दाड़=दाल, चिमटी=थोड़ी सी।
यह दूल्हा-दुल्हन के बिनोखी (बाना) फिराने का गीत है। दोसी, सुआसा और टेढ़ा मिलकर दुल्हन को बिनोखी फिराने ले जाते हैं। इस अवसर पर टेढ़ा एक बाँस की सिकोशी और झाँपी को कंधे पर रखता है, जिसमें भाड़ में फोड़े गये चना-मक्का की लाई रखते हैं। बिनोखी तीन घर फिराते हैं। उसी समय यह गीत गाया जाता है।

गीत में गाया गया है- हे दाई! आज तुम्हारी बेटी या दुल्हन भिखारी की तरह सुहाग की भीख माँगने निकाली है। हे दाई! मुझे आशीर्वाद दो। आशीर्वाद में एक मुट्ठी चावल और बहुत बड़ी (चिमटी भर) दाल दे दो। यही मेरे लिये तुम्हारा आशीर्वाद है, तीनों घरों से धान, मक्का का दुल्हन को नेग दिया जाता है।