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बिन बरसे मत जा रे / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
बिन बरसे मत जा रे बादल
मेरे आंगन में झुके हुए
तन झुलसे, मन विरह अनल में
प्राण ये कंठ में रुके हुए।
तुम आये एक आस लगी है
मन पपीहे की प्यास जगी है,
सोये भाग्य जगाने आये
रिमझिम जल बरसाने आये।
कितने जन्म गंवाये तुम बिन
पाकर अवसर भी चुके हुए।
ऊँचे कुल से तुम आते हो
प्रेम संदेश तुम लाते हो
तेरा अमृत घट है पूरा
मेरा जीवन शेष अधूरा।
कब से घोर निराशा में है
युगों से पनघट सूखे हुए।
अब क्या देर तेरे आने में
उमड़-घुमड़ कर छा जाने में,
मन मयूर हो गये मतवाले
पग में पायल नाचने वाले,
कोयल भी है प्रीत सहेली
कितने दिन हुए कूके हुए।