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बिहा करिय सिव कोहबर गेलअ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कोहबर में जाने पर शिव ने गौरी से घर की स्त्रियों का परिचय पूछा। गौरी ने बड़ी कुशलता से सबका परिचय दे दिया। अपनी सलहज का परिचय पाने पर विनोद में शिवजी कह देते हें कि अगर मैं पहले जानता, तो सलहज को ही दहेज में लेता। सलहज भला-बुरा कहने लगती है और वह अपनी सास से जाकर शिकायत करती है। वह शिव को उलाहना भी दे देती है कि बड़े भाग्य से तुम्हें मेरी ननद मिली है। ऐसी स्त्री तुम्हें कहाँ से मिलती? मेरी लाड़ली ननद बड़ी सुकुमार है, उसके खाने-पीने का खयाल रखना और जिस तरह तुम रहते हो, उसी तरह मेरी ननद को नहीं रखना। सलहज तथा साली के साथ दुलहे का विनोदपूर्ण संबंध होता है, इसीलिए सलहज से दुलहा विनोद करता है।

बिहा<ref>विवाह</ref> करिय सिव कोहबर गेलअ, गौरी लेलअ अँगुरी लगाइ हे।
अँगुरी लगाइ सिव बैसाइलअ<ref>बैठाये</ref>, पूछें लागल दिलहुँ के बात हे॥1॥
बिहा जे कैल्हाँ धानि भल<ref>अच्छा</ref> काज कैल्हाँ<ref>किये</ref>, चिनहु<ref>पहचान</ref> न भेल मोर, सारी<ref>साली</ref> सरहोज<ref>सलहज; साले की पत्नी</ref> हे।
कैसे चिन्हबअ<ref>पहचानूँगा</ref> निज सासु हे॥2॥
लालिओ<ref>लाल रंग की</ref> ओढ़नी लाल पहिरनी, लालिओ सपट<ref>साज-शृंगार</ref> सिंगार हे।
मुँह घुँघट दइ घर सेॅ बाहर भेलअ, उहा<ref>वही</ref> छेकै<ref>है</ref> अम्माँ हमार हे॥3॥
डाँरिहिं<ref>कमर में</ref> घँघँरी<ref>छोटा लहँगा</ref> छातिहिं चोली, सेॅथि<ref>माँग; सीमंत</ref> में इच्चिन<ref>ईंगुर</ref> सिंनुर<ref>सिंदूर</ref> हे।
ठट्टा<ref>मजाक</ref> मजा कैले घर सेॅ बहार<ref>बाहर</ref> भेलअ, उहा छेकै भउजी हमार हे॥4॥
जौं हम जानताँ<ref>जानता</ref> सरहोज होइतअ, दान दहेज तेजताँ<ref>तजता; छोड़ता</ref> सरहोज लेताँ<ref>लेता</ref> दहेज हे॥5॥
डारिक<ref>मेहतर या डोम का</ref> बेटा छिनारिक<ref>छिनाल का</ref> पूता, हमरा के माँगे दहेज हे।
बारि<ref>कमसिन</ref> ननदी हम घरँ करि राखबऽ, तोहरा के राखबऽ गुलाम हे॥6॥
दउरल<ref>दौड़े हुए</ref> दउरल गेलअ सासु जगाबे, ऐन्हअ<ref>ऐसा</ref> जमइया हमैं कतहु न देखल्हाँ।
सरहोज माँगै छय दहेज हे॥7॥
डाला तोरबऽ चौर<ref>सुरा गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा, जो सोने-चाँदी के डंडे में लागकर बनाया जाता है</ref> छिरिआइबऽ<ref>बिखेर दूँगा</ref> मउर करबऽ थकचूर<ref>चकनाचूर</ref> हे।
बारि ननद हम घर करि राखबऽ, तोरा के राखबऽ गुलाम हे॥8॥
बुनाइ लेबऽ डाला चुनि लेबऽ चौर, मउरियो लिहबऽ गोथाइ हे।
बारि ननदी तोर डोलिया चढ़ाइबऽ, लइ जैबऽ धिआ पराइ हे॥9॥
तोहरो सेॅ अम्माँ हे सिब गँगा तप कैलकौं, सुरज मनैलकों तहुँ पैल्हा<ref>पाये</ref> ननदी हमार हे।
बिहा जे कैल्हा सिब भल काम कैल्हा, सुन सिव बचन हमार हे॥10॥
तहुँ जे खाय छअ<ref>खाते हैं</ref> सिब भाँग धतूरा, मोर धिया खायछै खूबा<ref>खोया; औंटकर लुगदी-सा बनाया हुआ दूध</ref> औंटल दूध हे।
तहुँ जे सुतै छअ सिब गाछी बिरीछी, मोर धिया लाली रे पलँग हे।
तहुँ जे पिन्है छअ सिब चेथरा<ref>चिथरा; फटा-चिटा कपड़ा</ref> मोटिया<ref>गुदड़ी; फटे-पुराने कपड़ों को सीकर तैयार किया गया बिछावन</ref>, मोर धिया लाहरि<ref>गोट-पाटा चढ़ाया हुआ या जरी का काम किया हुआ रेशमी वस्त्र</ref> पटोर हे॥11॥

शब्दार्थ
<references/>