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बीज / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
में सिक्का नहीं हूँ,
जो जेब से गिर कर, एक बार खनक कर रह जाऊंगा ...
में वह नन्हा-सा बीज हूँ जो जमीन पर गिरा,
तो एक दिन बड़ा पेड़ बन कर,
तुम्हारी ज़िन्दगी को चिलचिलाती हुई धुप से बचा कर,
अपनी छाव में बेठऊंगा
में दोस्ती का वह बीज हूँ ...
जो एक बार फल गया तो।
हर रिश्ते में जी कर दीखाऊंगा