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बीज से फूल तक / एकांत श्रीवास्तव
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आ गया भादों का पानी
काँस के फूलों को दुलारता
और चैत की सुलगती दुपहरी में
पड़ी है मन की चट्टान
एक दूब की हरियाली तक मयस्सर नहीं
तपो
इतना तपो ओ सूर्य
कि फट जाए
दरक जाए यह चट्टान
कि रास्ता बन जाए अंकुर फूटने का
जीवन
बीज से फूल तक
यात्रा बन जाए ।