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बीतते बरस लो नमन! / प्रतिभा सक्सेना

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जुड़ गया एक अध्याय और,
गिनती आगे बढ़ गई ज़रा,
जो शेष रहा था कच्चापन
परिपक्व कर गए तपा-तपा .
आभार तुम्हारा बरस,
कि
तोड़े मन के सारे भरम!

फिर से दोहरा लें नए पाठ,
दो कदम बिदा के चलें साथ .
बढ़ महाकाल के क्रम में लो स्थान,
रहे मंगलमय यह प्रस्थान!
चक्र घूमेगा कर निष्क्रम,
नये बन करना शुभागमन!
अभी लो नमन!