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बीते बसंत की कविता / सत्यानन्द निरुपम
Kavita Kosh से
बसंत के गीत वो गाएं
जिनके कंधे पर
पसरी हो
सुगंध की बेल
...मैं तक रहा हूँ राह
फसल के सकुशल
घर आने की
मैं दो कोमल खुली बाँहों की पुकार नहीं सुन पाता
मेरे आसरे जीता है पूरा एक कुनबा
सच कहता हूँ
मैंने बसंत की अगवानी में
बोया ही नहीं गेंदे का फूल