बीसवीं सदी / प्रभाकर माचवे
बीसवीं सदी ने हमें क्या दिया ?
मोटर, रेल, विमान, क्रान्तियाँ
यह बेतार, सवाक् चित्रपट,
काग़ज़-मुद्रा, आर्थिक-संकट,
गति-अतिशयता, वेगातुरता...
कहीं प्रपीड़न, कहीं प्रचुरता !
इन सारे आविष्कारों ने
जग को उन्नत किस तरह किया ?
क्रय-विक्रय के संस्कारों ने
और आलसी हमें कर दिया।
बढ़ती शोषण-यंत्र-क्रिया
बीसवीं सदी ने यही दिया?
जबकि एक वाहन नवीन —
आया, त्यों, हो उसमें सवार
कितने समझे निज को कुलीन ।
औ' श्रमिक बिचारा मलिन-दीन
हो गया हमें ही नागवार ।
इसको ही संस्कृति-प्रगति कहा ?
बीसवीं सदी ने यही दिया ?
जबकि किसी के घर अनेक —
जलते हों विद्युद्दीप, देख!
तब होगी ही कोई कुटिया
जिसमें जलता होगा न दिया!
बीसवीं सदी ने यही दिया ?
उन्मूलित कर दी दान-दया !
जब रूस विश्व के साम्य-राज्य
की करता इतनी बड़ी बात,
तब भारत में भी क्यों अनाज
भेजा? यह तो है सिर्फ़ स्वार्थ !
बीसवीं सदी ने यही दिया ?
मानव को मानव का भक्षण
मानव को निज-संरक्षण का ।
परवाना सबको बाँट दिया —
जीवन-संघर्ष बढ़ा याँ तक
उस हाथ दिया, इस हाथ लिया !
देखा न पुण्य अथवा पातक,
जिसने मारा, बस वही जिया ।
बीसवीं सदी ने यही दिया ?
पूँजी के युग का अस्तकाल,
यह है जब सुन लो यही हाल :
इक ओर पड़ेगा रे अकाल,
दूसरी ओर धन से बिहाल !
पूँजीशाही के अन्तर्गत
बढ़ता जाएगा जब विरोध
आदर्श हो चले सब स्वर्गत,
वास्तवता का जग पड़ा बोध,
सबका ही पर्दाफ़ाश किया,
बीसवीं सदी ने यही दिया ?