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बुधिया / उर्मिला शुक्ल
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बुधिया ने शुरू किया था।
अपना सफर
बारात के साथ।
बारात के साथ
चलती रही वह।
मगर बारात कभी
रूकी नहीं उसके द्वार
उसके सिर पर है
रोशनी का ताज।
मगर रोशनी
कभी ठहरी नहीं
उसके द्वार।
चिराग तले अंधेरा
को करती सार्थक
बुधिया आज भी
चल रही है
बारात के साथ