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बुरे वक़्त में / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बुद्धिजीवियों ने मेरी खोपड़ी की तलाशी ली
आलोचकों ने देह झकझोरा
एक्टिविस्टों ने खींचे बाल
कविमित्रों ने लगाए कहकहे
एक लड़की
जो अभी-अभी इस गली से गुजरने वाली थी
उसने भी रास्ता बदल लिया
बुरे वक्त में !