बुल्ला की जाणाँ मैं कौण! / बुल्ले शाह
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
ना मैं मोमन<ref>मुसलमान</ref> विच्च मसीताँ,
ना मैं विच्च कुफर<ref>झूठ</ref> दीआँ रीता,
ना मैं पाकाँ<ref>पवित्र</ref> विच्च पलीताँ<ref>पापी</ref>
ना मैं मूसा ना फरऔन।
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
ना मैं अंदर वेद किताबाँ,
ना मैं विच्च भंगाँ ना शराबाँ
ना विच्च रिन्दाँ मस्त खराबाँ,
ना विच्च जागण ना विच्च सौण।
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
ना विच्च शादी<ref>खुशी</ref> ना गमनाकी<ref>गमी</ref>,
ना मैं विच्च पलीती<ref>अपवित्रता</ref> पाकी<ref>पवित्रता</ref>,
ना मैं आबी ना मैं खाकी,
ना मैं आतिश ना मैं पौण।
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
ना मैं अरबी ना लाहौरी,
ना मैं हिन्दी शहर नगौरी,
ना हिन्दू ना तुरक पशौरी,
ना मैं रहिन्दा विच्च नदौण।
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
ना मैं भेद मज़हब दा पाया,
ना मैं आदम हव्वा जाया,
ना मैं आपणा नाम धराया,
ना विच्च बैठण ना विच्च भौण।
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!
अव्वल आखर आप नूँ जाणाँ,
ना कोई दूजा होर पछाणा,
मैत्थों होर ना कोई सिआणा,
बुल्ला शाह खड़ा है कौण?
बुल्ला की जाणाँ मैं कौण!