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बूढ़ा एक शजर हूँ मैं / अजय अज्ञात

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बूढ़ा एक शजर हूँ मैं
कुछ चिड़ियों का घर हूँ मैं

सच्चा इक रहबर हूँ मैं
मील का इक पत्थर हूँ मैं

दिखता कुछ बाहर हूँ मैं
लेकिन कुछ भीतर हूँ मैं

गीत ग़ज़ल जो भी समझो
शब्दों का पैकर हूँ मैं

मुझको तुम पढ़कर दखो
सबसे ही से हटकर हूँ मैं