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बेटी का आगमन-एक / मुकेश मानस

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बेटी का आगमन : एक


जैसे अनन्त पतझड़ के बाद
पहला-पहला फूल खिला हो

और किसी निर्जल पहाड़ से
फूट पड़ा हो कोई झरना

जैसे वसुंधरा आलोकित करता
सूरज उदित हुआ हो

चीड़ वनों में गूँज उठा हो
चिड़ियों का कलरव

जैसे चमक उठा हो इन्द्र्धनुष
अम्बर को सतरंगी करता

और किसी अनजान गंध से
महक उठी हो
जैसे कोई ढलती सांझ

ऐसे आई हो
तुम मेरे जीवन मे


सागर की उत्तुँग लहरों पर सवार
जैसे तटों तक पहुँचती है हवा

गहन वन में चलते-चलते
जैसे दिख जाए कोई ताल

सदियों से सूखे दरख्त पर
जैसे आ जायें फिर से पत्ते

पतझर से ऊबे पलाश में
जैसे आता है वसंत
फूल बनकर

ऐसे आई हो
तुम मेरे जीवन में

आओ तुम्हारा स्वागत है।

2009, खुशी के पहले जन्मदिन पर