कातर स्वर में बेटी बोली,
इंसाफों की पोल वो खोली।
अंधी कानून,बधिर सरकार,
इनका माँ न कोई दरकार।
दे दो मुझको खड्ग ढाल,
बचा सकूँ मैं अपनी खाल।
देखे अब दुनियाँ मेरी चाल,
बच न पाये कोई दुष्ट काल।
माँ!रणचण्डी मैं रूप दिखाऊँ,
वहशी को मैं सबक सिखाऊँ।
उसको मार शोणित पी जाऊँ,
भू पर नूतन इतिहास रचाऊँ।
दुर्योधन न अब वसन खींचे,
न द्रुपदसुता सा आँखें नीचे।
न दे कोई मुझे संज्ञा अबला,
दिखा दूँ माँ! मैं बन सबला।