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बेटी की चिन्ता में माँ / संध्या रंगारी

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छह वर्ष की मेरी बेटी
स्कूली बस्ते का बोझ पीठ पर सँभालते हुए
जब आती है,
स्कूल से लौटकर घर
उतार लेती हूँ मैं उसका बोझ

पर डर जाती हूँ मैं
कि देर-सवेर जब वह जाएगी ससुराल
और वहाँ से आएगी चार दिनों के लिए मैके
तब उसकी पीठ पर लदे
दुख का बोझ भी
मैं उतार पाऊँगी क्या ?

मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित