भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटैम री बिरखा / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिरखा आई का कोनी आई
सवाल औ कोनी!
बिरखा कित्ती बरसी, थोड़ी कै घणी
सवाल औ भी कोनी।

बगत माथै नीं आयी बिरखा
निसरग्यो सगळो बगत
अबै छलीज्या है सगळा ताळ-तळाब
हुवो भलांई अबै आं मांय
छपक-छपक।

सुपना नीं आवै इण बेटैम री बिरखा सूं
नींद री टैम नींद घुळै कोनी
सुपना बणै कोनी
अेकली पड़ी बरसै आ बेटैम री बिरखा
खेत भरै कोनी।

बिरखा रो धरम हुवै बरसणो
टैमसर बरसणो
नीं तो किरसा सूं रळै कोनी
खेत भरै कोनी
बिना टैम री बिरखा बरस्यां
सुपना आवै कोनी।