भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोया बोया री मां मेरी बणी / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोया बोया री मां मेरी बणी आला खेत खेत रूखाली मैं गई
राही राही री मां मेरी दो पंछी जायं एक गोरा एक सांवला जी
गोरा जी मां मेरी राही जा सांवल म्हारे खेत में री
‘के रे सांवल भूला सै राह के तेरी ब्याही बाप कै जी
‘ना मैं है सुन्दर भूला सूं राह न मेरी ब्याही बाप कै जी’
‘हम तै हे सुन्दर तेरे लगवाल बाप तेरे के साजना जी’
‘तेरे कैसे रे सांवल तीन सौ साठ बाप मेरे के मेहनती जी’
‘तेरी कैसी हे सुन्दर तीन सौ साठ बाप मेरे की झीमरी जी’