भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोली तू सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
जद तांई है
तद तांई सह!
बोली तूं सुरतां यूं आज!
ऐ करमा रा भाटा
बांध्या है जिका राम!
ऐ भरमा रा भाटा
रच्या जिका है गाम
दोनां रै बिचाळै
बोलबाला बै!
जद तांई है
तद तांई सह!
कूड़ बात है कविता सूं
जग मांय नाम मिलै!
आ तो बा सूळी है जिण पर
ताता डाम मिलै!
सिसकारो ई करणो कोनी
"ईसा" दांई रह!
जद तांई है
तद तांई सह!