ब्रेक-अप-7 / बाबुषा कोहली
भीड़ भरी सड़क पर बड़े दीवानेपन से एक दिन उसने मेरा नाम पुकारा । मैं भागती हुई उसके पास तक गई और उस पर बेतहाशा चिल्लाने लगी। "तुम एकदम पागल हो क्या ? ऐसे मेरा नाम चिल्लाने का मतलब ? सब क्या सोचेंगे ?" उसने मुझे अपने सीने में भींच लिया । "दुनियादारी की बड़ी फिकर तुम्हें ?"
दुनियादारी !
उस के सीने से हटी और उल्टे पाँव से दुनिया को जो 'किक' मारी तो दुनिया सीधे गोल-पोस्ट के बाहर। उसका नाम उठाया मैंने हाथों में, उस पर जमी धूल झाड़ी और सजाया । उसे अपनी दुनिया का अर्थ बताया । मुझ पर लाड़ जताते हुए उसने मेरी दुनिया में क़दम रखा और प्रतिज्ञा की कि इस जन्म तो क्या किसी जन्म में भी इस दुनिया से बाहर नहीं हो सकता । मेरी दुनिया उसके नाम से जगमगाने लगी । मगर उस दिन जब तेज़ बुखार की हालत में मैं उसका नाम बुदबुदा रही थी बहुत धीमे -धीमे, उसके घर की खिड़कियों के शीशे चटक गए । उसने चीख़ कर कहा " तुम पागल हो गई हो क्या ? इस तरह मेरा नाम लेने का मतलब ? घर की खिड़कियाँ !"
घर ? दिल क्या टूटता, साहब ? इतने दिनों बाद उल्टे पाँव की हड्डी टूट गई ।
न मैंने आम तोड़े बचपन में, न खिलौने तोड़े, न जवानी में ताले तोड़े न ही कभी क़समें-वादे ही, मगर मेरे इर्द-गिर्द टूट-फूट का समृद्ध इतिहास है । माना कि आप साबुत, सही-सलामत, शरीफ़ लोग दुनिया चलाते हैं, मगर ये हम टूटे -फूटे लोग ही हैं, जो दुनिया बचाते हैं । हमें सुनिए कि हम मोज़ार्ट की धुनों में खनकते हैं, हमें सूंघ लीजिए कि हम गुस्ताव के 'द लास्ट किस' में महकते हैं, हम में भीग जाइये कि हम वांग कार वाई के जादुई पर्दे पर बरसते हैं । हम इज़ा के नृत्य में पनाह पाते हैं, मजाज़ के शराब के प्याले में डूबते-उतराते हैं, हुसैन की कूँची में आकार पाते है, अमृता की स्याही में घुल जाते हैं ।
छतरियाँ क्या हैं ? हम छतों को उड़ा चुके बारिश में टूट कर भीगे हुए लोग, हम टूटे स्वप्न के टुकड़ों को आँखों में सहेजे हुए लोग, हम टूट कर प्यार करने वाले और बिखर जाने वाले लोग, सनम की टूटी क़समों को खीसों में भरे बेवजह खीसे निपोरते लोग, हम नियम तोड़ कर सड़क के दाहिनी ओर चलने वाले लोग, हम बाँध के टूटने से नदी में बह कर मारे गए लोग !
हमें टूटी खिड़कियों का भय कोई दिखाता है तो हँसी आती है ।
हम टूटी हुई गुरियों को सहेजने वाले लोग हैं । हम टूटे-फूटे लोग साँस टूटने से नहीं डरते । किसी बच्चे की आँख का मोती टूटने से डरते हैं, साहब !