कहते हैं हर कथा का नायक वही होता है जिसने कथा लिखी
मेरे एकतरफ़ा बयानों को कोई न सुने
प्रेम तो आँखों में पट्टी बाँधे हुए था
इस लिहाज़ से प्रेम को न्यायप्रिय होना चाहिए
क्या दलील दूँ उसकी ओर से कि क़यामत के दिन उसे माफ़ किया जाए
ये तथ्य है कि मुक़दमा उसके ख़िलाफ़ है
ये न्याय है कि उसकी वक़ालत मैं करूँ
उसने प्यार किया था
चाहे पल भर को ही सही
क़त्ल मेरा आख़िर उसका ही तो हक़ था
मी लॉर्ड ! मेरे हत्यारे को दोषमुक्त किया जाए
क्या इतना काफ़ी नहीं कि उसके पास भी तो एक दिल हुआ करता था
दिल, जिसे डॉक्टर मशीन से पढ़ता है
आड़ी-टेढ़ी लकीरों में पढ़ता है
मैं ठहरी अनपढ़-गँवार !
दिल से दिल पढ़ बैठी
मैं दिल को डूबती-तेज़ होती धड़कनों में पढ़ बैठी
मैं ग़लत पढ़ बैठी, मी लॉर्ड !
उसे दोषमुक्त किया जाए
हमारे हक़ में इतना तो हो कि इस मुकदमे को यहीं छोड़ दिया जाए
तीन बार तलाक़ के उच्चारण से कहीं ज़्यादा कट्टर है उसकी चुप्पी
इतना ही कट्टर प्रेम उसका
ऐसी ही कट्टर घृणा उसकी
इतना ही कट्टर चुम्बन
इतनी ही कट्टर विरक्ति
ऐसी ही कट्टर मुक्ति
सलीब पर टँगी है उसकी मुक्ति कीलों से बिंधी हुई
सहते-सहते क़ब्र में ढह जाएगा मगर खुद के बचाव में कभी मुँह न खोलेगा
ये कमज़ोर लोग इतने कट्टर क्यों हो जाते हैं, मी लॉर्ड !
मैं इस मतलबी संसार में उसकी इकलौती वक़ील हूँ
उसका कोई बयान मैं आपको सुनवा नहीं सकती
उसकी चुप्पी उसके हक़ में सबसे बड़ी दलील है
उसकी बेबस चुप्पी सुनिए, मी लॉर्ड !
पूरी बातें बड़ी आसानी से पूरी हो जाती हैं
बिना किसी दाँव-पेंच के
बिना किसी बहस के
अधूरी बातों के मुक़दमे चल जाते हैं
पक्के मकानों के भीतर ढहते कच्चे घरों पर मुकदमे चल जाते हैं
इस क़िस्से को आधा छोड़ दीजिए
हमें अधूरा छोड़ दीजिए
उसे मेरी हत्या के अपराध से दोषमुक्त कीजिए
और कुछ नहीं तो, हमें कोई और तारीख़ दे दीजिए, जनाब !