भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्लैक होल / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
यक्ष प्रश्न दागती रही मैं तुम पर
उत्तर ना देने के कारण
बदलते जा रहे थे पत्थर में तुम
धीरे-धीरे
आख़िरी तीर भी तरकश का चलाया मैंने
बार बार कोशिश की,
संकल्प की तरह प्रश्न को उठाया मैंने
फिर भी असफल ही रही
किसे पता था तुम्हारा मौन
साबित होगा एक दिन ब्लैक हॉल
कि बंद भी कर लोगे तुम
अपने हृदय के सभी रास्ते
तब भी समा जाऊँगी तुम में मैं
किसी क्षुद्र ग्रह की तरह।