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भँवरा-कुसुम / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’

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भँवरा-कुसुमवाँ के नेह अनमोल रे।
भँवरा के जियरा के बतिया कुसुम सुने;
कुसुम के प्रीतिया रे भँवरा समुझि गुने;
दूनो के पिरीतिया के केई लीही तोल रे?
प्यार इहे भँवरा के जिनगी के सार इहे;
भँवरा के जिनगी के बस रे अधार इहे;
कुसुमा पिलावे नित प्यार-धार घोल रे।
रतिया कुसुमवाँ के गोदिया में नींद सेवे;
होखते बिहनियाँ रे घूमि-घूमि चूमि लेवे;
सुख-दुःख, दुख-सुख नित देबे खोल रे।
कुसुमा के रुठला प भँवरा दुलार देबे;
भँवरा रिझावे खातिर कुसुमा सिंगार लेवे;
तब ढूले दूनो मिलि नेहवा के डोल रे।
भँवरा-कुसुमवाँ के नेह अनमोल रे।