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भगोरिया / असंगघोष

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फागुन में मस्त हो
बहती फगुआ!
भीलांचल के ओर-छोर को
टकोरने लग जाती
पूर्वा बहती, पछुआ बहती
भीलों के जीवन को छूती
माही में बहते
कलरव के संग
भगोरिया ले आती

गढ़ खंखई में
मेला जुटता
थावरा, एतरी, दित्या, दित्तूड़ी
और आस-पास
सब ही गाँवों के
झुण्ड-झुण्ड में
युवा जुटते
युवती जुटतीं
ढोल जुटते
माँदल जुटते
बंसी जुटतीं
घुँघरूं जुटते

भील बालाएँ
चाँदी की पट्टिकाएँ,
तागली, बाजूबंद चूड़ियाँ
पहनें आतीं

ढोल-माँदल की थाप
थाली की झंकार
संगत करती
वाहली की मधुर धुन
लय-ताल पर
झूम-झूम कर
सोमला, मंगला, बुद्या थावरी
सुख्खी के पाँव थिरकते
खनकते घुँघरूं
गूँज उठतीं
मधुर स्वर लहरियाँ

इन्हीं दिनों आम बौराते
ताड़ वृक्षों से
रिसती ताड़ी
खेत-खेत,
सड़क-सड़क
पूरी वनभूमि पर
चहुँओर टपकता
रसभरा सुगंधित
महुआ!
एक फूल की कच्ची बनती
यह सब मिलकर
मधु और मद भर देते
फसल पकी तो पर्व मनाते

होले-होले
रसराग भरा यह
भीलों का जीवन रंग
अपनी चरम परिणति को पाता
जिसका इंतजार रहा आता
साल भर
वह भगोरिया का रूप ले आता

होली पहले के हाट-बाजारों में
झूले लगते
चकरियाँ लगतीं
छेड़ा खींचे झूला झूलतीं
आदिवासी बालाएँ
गोदना गुदवातीं
हाथों पर नाम लिखातीं
चेहरे पर आभूषण बनवातीं

चरमोत्कर्ष पर
होता भगोरिया!

भीलजन नाचते गाते
शौर्य दिखा
भील बालाओं को रिझाते
मनभाती
प्रियतमा को
वधु चुन
गालों पर गुलाल मल
पान की पीक डाल
अपने संग भगा ले जाते

बिना कुण्डली
जोड़ी बनतीं

थावरा-सुख्खी,
दित्या-ऐतरी
सोमला-सोमली
(ऐसे ही कई-कई)
जोड़ियाँ बन
भाग जातीं

फिर दोनों के
सगे-सम्बन्धी जुटते
भाँजगड़ा की बातें होतीं,
दारू पीते,
बकरा कटता, और
जब भाँजगड़ा थई जाता
घर बस जाता

भाँजगड़ा की रकम चुकाने
लड़के का बाप
जात नोतता
नोतरा डलता
सगे-सम्बन्धी साथी जुटते
कर्ज की मानिंद
पैसा जुटता
जिसे चुकाने
ताजिंदगी पैसा जोड़
हर नोतरा में जाकर
खुद को मिले नोतरा का
सवाया डाल आते
मजूरी करते
मामा-मामी
जिसे चुकाने!