भरिजन्म कमयला / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
भरिजन्म कमयला बड़द, मुदा
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
कत दुर्योधन भेल एकट्ठा,
भीमसेन सन बहुतो पट्ठा,
दुःशासन सब आसन छेकल
बड़बड़ पैघ अलगटेटा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
एको युधिष्ठिर भेटि न सकला
कर्म-रेख क्यो मेटि न सकला,
लेटि गेल छथि सब छाहरि तर
भरिपेटा ओ अधपेटा।
बैसल हकमै छथि कुकुरे टा।
पार्थ पुनः अवतार लेलनि अछि,
छार-भार कप्पार लेलनि अछि,
हिंसख कहाँ लगलनि अछि, ककरो
नहि लगलनि अछि हुरपेटा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
लच्छन एक, कुलच्छन बेसी,
भुली बिलाड़ि थिकी अनदेशी,
भिनसर साँझ उठौना चाही
छल्हिगर दूध, अवस्से टा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
एकसर पार्थ कोना संचरता,
वन-वन जा फल-मूल कचरता,
लय प्रकाश दौड़ल अबैत अछि
भगजोगनी दल अगबेटा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
हथ-हथभरि जे जीह बबै’ छथि,
सबसँ बेसी सैह पबै’ छथि,
क्यो देयाद, क्यो भगिनमान,
क्यो साढ़ आ क्यो सरबेटा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
युग धो धा कय लाजो चटलक
अपन पाप अनका सिर सटलक,
कटलक टीक, पलटलक संस्कृति
बाँकी छल बस एतबे टा।
बैसल हकमै’ छथि कुकुरे टा।
रचना काल 1949 ई.